मेरे बेटे,
तुमसे फोन पर बातें करना,
शीतलता भी देता है और विकलता भी.
तुम मम्मी के लिए रोने लगते हो,
और मैं तुम्हारे लिए.
छटपटाने लगती हूँ,
एक पानी से बाहर निकली हुई
मछली की तरह.
तुम्हारा छटपटाना माँ के लिए,
मेरा छटपटाना तुम्हारे लिए,
कैसी नियति है राजा बेटे,
यहाँ मैं अकेली,
वहां तुम अकेले.
कहीं पापा अकेले,
हर कोई अकेला.
तुम रोना नहीं, कमजोर भी न होना.
तुम्हे अपनी जिंदगी की राहें
तय करनी है निर्विघ्न.
इसलिए तो अभी से
इतना कष्ट सह रहे हो.
काश बता पाती मै,
यह बता सकती
अपने बच्चे के लिए ,तड़पती छटपटाती एक माँ.
कि उसे क्या होता है?
यह पीड़ा शब्दों से,
आंसुओं से,
धडकनों से,
सभी से परे है
सभी से परे...
______________
तुमसे फोन पर बातें करना,
शीतलता भी देता है और विकलता भी.
तुम मम्मी के लिए रोने लगते हो,
और मैं तुम्हारे लिए.
छटपटाने लगती हूँ,
एक पानी से बाहर निकली हुई
मछली की तरह.
तुम्हारा छटपटाना माँ के लिए,
मेरा छटपटाना तुम्हारे लिए,
कैसी नियति है राजा बेटे,
यहाँ मैं अकेली,
वहां तुम अकेले.
कहीं पापा अकेले,
हर कोई अकेला.
तुम रोना नहीं, कमजोर भी न होना.
तुम्हे अपनी जिंदगी की राहें
तय करनी है निर्विघ्न.
इसलिए तो अभी से
इतना कष्ट सह रहे हो.
काश बता पाती मै,
यह बता सकती
अपने बच्चे के लिए ,तड़पती छटपटाती एक माँ.
कि उसे क्या होता है?
यह पीड़ा शब्दों से,
आंसुओं से,
धडकनों से,
सभी से परे है
सभी से परे...
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यह कविता लिखी गयी थी जब मेरा बेटा पाँच साल की उम्र में ही सैनिक स्कूल तिलैया (जूनियर सेक्सन) के हॉस्टल में रहता था| आखिर पढाई जो करनी थी उसे|
Very poignant.
ReplyDeleteThank you, Anubhav.
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