Wednesday, October 20, 2010

4.

तुम्हारी बातें|

प्यार से बनती हैं,
पर अक्सर छील जाती हैं मुझे|

मैं तड़प उठती हूँ अपने प्यार पर,
अपने इस पागल दिल के इज़हार पर|

मचल उठते हैं आंसू आँखों में आने को,
तब तुम्हरी कोशिश शुरू होती है,
मुझे हंसाने को|

तुम्हे कैसे यकीन दिलाऊँ,
लैला सिर्फ मंजनू की थी,
उसकी ही रहेगी|

दरअसल,
मेरा प्यार, मेरा ऐतबार,
मेरी रूह, मेरी धड़कन,
सब कुछ तुम्हारे पास चली गयी है|

ऐसे में तुम्हे मुझपर,
यकीन आये भी तो कैसे?
क्योंकि मेरा तो अब कुछ नहीं|

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