तुम्हारी बातें|
प्यार से बनती हैं,
पर अक्सर छील जाती हैं मुझे|
मैं तड़प उठती हूँ अपने प्यार पर,
अपने इस पागल दिल के इज़हार पर|
मचल उठते हैं आंसू आँखों में आने को,
तब तुम्हरी कोशिश शुरू होती है,
मुझे हंसाने को|
तुम्हे कैसे यकीन दिलाऊँ,
लैला सिर्फ मंजनू की थी,
उसकी ही रहेगी|
दरअसल,
मेरा प्यार, मेरा ऐतबार,
मेरी रूह, मेरी धड़कन,
सब कुछ तुम्हारे पास चली गयी है|
ऐसे में तुम्हे मुझपर,
यकीन आये भी तो कैसे?
क्योंकि मेरा तो अब कुछ नहीं|
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